हमने दो दिन पूर्व एक लेख में अपने कुछ आर्यमित्रों की जानकारी दी है जिनके साहचर्य से हम जीवन में वर्तमान अवस्था तक पहुंचें हैं। आज इस लेख में हम कुछ अन्य मित्रों की चर्चा कर रहे हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हमें एक बहुत ही अच्छी समर्पित मित्रों की मण्डली प्राप्त हुई। यदि हमारे यह सब मित्र न होते तो हम जो हैं वह न होकर कुछ और प्रकार के व्यक्ति होते। हम अपने इस जीवन से सन्तुष्ट हैं। हमें आशा है कि भविष्य में भी हमें अपने सभी मित्रों व उनके परिवारों का प्रेम एवं सहयोग प्राप्त होता रहेगा। हम इस लेख में अपने हार्दिक मित्र श्री राजन्द्र सिंह काम्बोज, श्री चन्द्रदत्त शर्मा, श्री राम अवतार गर्ग, श्री भोला नाथ आर्य तपोवन तथा श्री ललित मोहन पाण्डेय जी का परिचय दे रहे हैं। हमारे यह मित्र कौन व कैसे हैं, इसका कुछ अनुमान कराने का हमारा आगामी पंक्तियों में प्रयास रहेगा। प्रथम हम श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज, अधिवक्ता का उल्लेख कर रहे हैं।
श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज, अधिवक्ता एवं पूर्व प्रशासक आर्यसमाज धामावाला देहरादून।

श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज जी जन्म देहरादून के निकटवर्ती जिले सहारनपुर के औरंगाबाद गांव में 9 सितम्बर, 1953 को हुआ था। आप तीन भाई एवं तीन बहिन हुए जिनमें से दो बड़ी बहिनों का देहान्त हो चुका है। श्री राजेन्द्र जी से हमारा प्रथम परिचय सन् 1970-1975 के मध्य आर्यसमाज धामावाला में हुआ था। उन दिनों आप किशोर व युवावस्था के मध्य में थे और हाईस्कूल या इण्टर कर वहां अपनी सेवायें प्रदान करते थे। आर्यसमाज में रहते हुए ही आपने बी.ए. व कुछ वर्ष बाद एल.एल.बी. किया। वर्तमान में आप देहरादून कचहरी में एक अधिवक्ता के रूप में कार्य करते हैं। आपका अपना चैम्बर है जहां आपके साथ दो अन्य अधिवक्ताओं सहित आपकी अधिवक्ता पुत्री भी बैठती हैं। आर्यसमाज के लोग जो किसी काम से कोर्ट परिसर में आते हैं आपसे मिलते हैं। श्री राजेन्द्र जी हमारे घनिष्ठतम मित्र हैं। हमारे परस्पर पारिवारिक सम्बन्ध हैं। हमें कभी कोई भी असुविधा व कष्ट हो तो राजेन्द्र जी एक मित्र एवं पारिवारिक सदस्य की तरह सहयोग करते हैं और हमारे दुःख में दुःखी होते हैं। हम दोनों किसी विषय में यदि एकमत न भी हों तो भी इससे हमारे सम्बन्धों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वर्तमान में भी हम राजेन्द्र जी से मिलने प्रत्येक दिन व कुछ दिनों के अन्तराल पर कचहरी जाते रहते हैं। श्री राजेन्द्र कुमार जी आर्यसमाज धामावाला देहरादून के वर्ष 1994-1995 में प्रशासक रहे हैं। आर्यसमाज धामावाला का यह स्वर्णिम काल था। इसका कारण यह था कि श्री राजेन्द्र जी व हमें आर्यसमाज के विद्वान एवं अनुभवी पुराने सभी सदस्यों का सहयोग एवं मार्गदर्शन प्राप्त था। इन प्रमुख ऋषिभक्त व्यक्तियों में श्री अनूप सिंह जी, श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य, श्री ईश्वर दयालु आर्य, श्री शान्तिस्वरूप जी, पं. सुगनचन्द जी, श्री वेदप्रकाश जी, श्री ठाठ सिंह जी, श्री संसार सिंह जी, कर्नल राम कुमार आर्य, श्री धर्मपाल सिंह, श्री शिवनाथ आर्य, श्री प्रीतम सिंह आदि मुख्य हैं। राजेन्द्रजी की प्रशासक की अवधि में आर्यसमाज में अनेक अपूर्व कार्य हुए जिनकी योजना एवं मार्गदर्शन हमें प्रा. अनूप सिंह जी के द्वारा प्रदान किया गया था। यहां पर 15 अगस्त, 1994 को देहरादून के एक दर्जन से अधिक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान किया गया था जिसमें हैदराबाद सत्याग्रह में भाग लेने वाले आर्य सदस्य व सत्याग्रही श्री जगदीश भी सम्मलित थे। यह आयोजन आर्यसमाज के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी वैद्य श्री धर्मदेव रतूड़ी की अध्यक्षता में किया गया था। पत्रकारिता सम्मेलन का भी अपूर्व आयोजन किया गया था। दीपावली एवं ऋषि बोधोत्सव पर आर्य सम्मेलन किये गये थे। रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी के आयोजन हमें आज भी स्मरण हैं। जन्माष्टमी पर्व पर हमने एक स्थानीय पौराणिक मन्दिर में आये हुए मथुरा की महनीय हस्ती आचार्य वासुदेवाचार्य जी को आमंत्रित किया था। हमें पता नहीं था कि कुछ पौराणिक विद्वान ऋषि दयानन्द का इतना अधिक आदर करते हैं। उन्होंने जो प्रवचन किया था वह हमने लिपिबद्ध कर स्थानीय पत्रों में दिया था जो प्रकाशित हो गया था। साप्ताहिक पत्र आर्यमित्र, लखनऊ के मुख पृष्ठ पर वह लेख छपा था। कुछ समय बाद महात्मा नारायण स्वामी आश्रम, रामगढ़ तल्ला में आर्य प्रतिनिधि सभा, उ.प्र. के प्रधान श्री कैलाशनाथ सिंह जी को स्वामी वासुदेवाचार्य जी के कुछ वचनों को दोहराते सुना तो हमें सुखद अनुभूति हुई थी। पर्यावरण और समाज शीर्षक व्याख्यान एक पर्यावरणविद् श्री वीरेन्द्र पैन्यूली जी ने दिया था। इसको भी सभी स्थानीय पत्रों ने चित्र सहित प्रकाशित किया था। श्री राजेन्द्र काम्बोज ने हमारे निजी न्यायालीय वादों में हमारी जो सहायता की है उससे हम कभी उऋण नहीं हो सकते। हमने 25 से अधिक छोटे बड़े सभी वादों में विजय प्राप्त की जिसका श्रेय श्री राजेन्द्र जी व हमारे अन्य अधिवक्ताओं को है। श्री राजेन्द्र जी के साथ हमें पंजाब के कादियां और हिण्डोन सिटी में सन् 1997 में आयोजित पंडित लेखराम बलिदान शताब्दी में जाने का अवसर भी मिला। श्री राजेन्द्र जी का परिवार हमारा ही परिवार है। हमारे सुख व दुःख की चिन्ता करने वाले मित्रों में श्री राजेन्द्र जी और श्री राम अवतार गर्ग जी से बढ़कर हमारा हितैषी अन्य नहीं है। हम श्री राजेन्द्र जी के स्वस्थ एवं सुखद जीवन सहित दीर्घायु की कामना करते हैं।
श्री राम अवतार गर्ग, सेवानिवृत सरकारी अधिकारी एवं आर्यसमाज की गतिविधियों में हमारे सहायक।

श्री राम अवतार गर्ग (जन्म 27-2-1942) हमारे आत्मीय मित्र हैं। आपसे हमारा पारिवारिक सम्बन्ध रहा है व अब भी है। आप और हम देहरादून के सरकारी प्रतिष्ठान ‘भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून’ में कार्यरत रहे। सन् 1978 में देहरादून के दून अस्पताल में हमारे पिता और उनका बड़ा पुत्र (आयु लगभग 7 वर्ष) उपचारार्थ भर्ती थे। दोनों के वार्ड निकट होने के कारण हम एक दूसरे के सम्पर्क में आये। श्री गर्ग ने उन दिनों अनजान होते हुए भी हमारे पिता के साथ बहुत मधुर व्यवहार सहित उनकी सेवा की। इसके बाद वह आर्यसमाज आने लगे थे। बड़े पुत्र की शैशव अवस्था में ही मृत्यु हो जाने पर उनको पितृ शोक की स्थिति से गुजरना पड़ा। इस स्थिति में उन्होंने देहरादून के आर्य बाल वनिता आश्रम को अपनी नियमित सेवायें दी थी। वह प्रतिदिन आश्रम में जाकर बच्चों से मिलते और उनको शिक्षित करने के लिये उन्हें पढ़ाते थे। उनके बहनोई श्री पदमचन्द आर्य मेवात हरियाणा में आर्यसमाज के प्रमुख नेताओं में से हैं। उनके छोटे भाई श्री जयपाल गर्ग दिल्ली की जनकपुरी आर्यसमाज के प्रधान हैं। उनका एक भाई श्री आदर्श गर्ग, तावडू जिला गुड़गावं में आर्यसमाज का पदाधिकारी, आर्य पुरोहित एवं पत्रकार है। श्री राम अवतार गर्ग जी ने अपने छोटे भाई जयपाल गर्ग जी के साथ रोजड़ में योग शिविर में भाग लिया है। उनके पुत्र श्री कुलदीप गर्ग पर भी आर्यसमाज के संस्कार हैं। वह अपने परिवार के साथ हैदराबाद में रहते हैं। बचपन में आर्यजगत में एक गुरुकुल के ब्रह्मचारी को क्षयरोग होने तथा उनकी आर्थिक सहायता विषयक समाचार पढ़कर उन्होंने अपनी पूरे महीने की पाकिट मनी हमें प्रदान की थी जो हमने उस बालक के उपचार के लिये प्रेषित कर दी थी। श्री गर्ग जी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में हमारी व हमारे परिवार की प्रशंसनीय सहायता एवं सुध ली है। लगभग 25-30 वर्ष पूर्व एक बार धर्मपत्नी एक अस्पताल में भर्ती थी। तब श्री गर्ग प्रतिदिन प्रातः 5.00 बजे गरम गरम चाय लेकर वहां पहुंच जाते थे। जीवन में आपने हमारी आर्थिक व सभी प्रकार से सहायता की थी। आज भी वह हर प्रकार का सहयोग करने में तत्पर रहते हैं। ऐसे स्नेही मित्र सौभाग्य से ही मिलते हैं। हमारे बच्चों के वह औरस ताऊ की तरह हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमल गर्ग जी का दिल्ली में देहान्त हुआ। अब वह नौएडा में अकेले रहते हैं। श्री गर्ग जी का एक पौत्र एवं एक पौत्री है। एक महत्वपूर्ण बात यह भी लिख दें कि सन् 1994-1997 में जिन दिनों उनका पुत्र कुलदीप गर्ग आईआईटी, मुम्बई से बी.टैक. कर रहा था, उसके कमरे में ऋषि दयानन्द का चित्र लगा रहता था। मूर्तिपूजा करना उसे बचपन में ही छोड़ दिया था जिसकी जानकारी उनकी माता श्रीमती कमल गर्ग ने हमें दी थी। उन्होंने बताया था कि चि0 कुलदीप ने अपनी मां को बताया कि जब वह साईकिल से स्कूल जाता है तो रास्ते में कई मन्दिर पड़ते हैं परन्तु तब उसने हमारे व आर्यसमाज के प्रभाव से मन्दिर व उसकी मूर्तियों के सम्मुख सिर झुकाना बन्द कर दिया था। श्री कुलदीप गर्ग एक कवि हृदय वाले युवक हैं। उनकी कुछ भावपूर्ण कवितायें हमने पढ़ी हंै। सन् 1994 में वह आर्यसमाज आते थे। जब उन्होंने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी तब उन्होंने आर्यसमाज धामावाला देहरादून की यज्ञशाला में आकर यज्ञ किया था। श्री गर्ग के साथ हमारी बहुत स्मृतियां हैं। वर्तमान में वह रुग्ण चल रहे हैं। हम उनके स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की कामना करते हैं।