बच्चे को नहीं रहने देती भूखा... वो मां बनना आसान नहीं
 





एक मां नौ महीने तक बच्चे को अपनी कोख में पालती है। इस दौरान वह कितनी परेशानियों से गुजरती है, इसका अंदाजा केवल भगवान या फिर खुद मां ही लगा सकती है। कहते हैं जब एक औरत बच्चे को जन्म देती है, तो एक तरह बच्चे को पहला और औरत का दूसरा जन्म माना जाता है। डिलीवरी के वक्त होने वाली दर्द को केवल एक औरत ही महसूस कर सकती है। आइए जानते हैं मां बनने की खुशी पाने के लिए एक औरत को किस-किस दर्द से गुजरना पड़ता है...



मन खराब रहना


एक औरत जब मां बनती है तो 9 महीने तक वह अपने अंदर एक जीवन संभालकर रखती है। जो शायद उसे अपनी जिंदगी से भी प्यारा होता है। लगभग 2 से 3 महीने बाद जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, वैसे वैसे उसकी भूख प्यास बढ़ती जाती है। ऐसे में कई बार मां को उल्टी होना, मन खराब और घबराहट होने जैसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है।


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सूजे हुए पैर


जैसे-जैसे पेट में बच्चा बड़ा होता जाता है, वैसे वैसे मां के शरीर को पेट का भार झेलना पड़ता है। जिस वजह से मां के पैरों में सूजन, पेट पर स्ट्रेच मार्क्स और शरीर में रैशेज पड़ने लगते हैं। सीढ़ीयां चढ़ना तो दूर कमरे से बाथरुम तक जाते वक्त उसे कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है। बड़े हुए वजन के कारण चलने फिरने से सांस-फूलना और थकान महसूस करना एक औरत के लिए आम बात हो जाती है।


कपड़े पहनने में दिक्कत


हमेशा से अपने फिगर और कपड़ों का ध्यान रखने वाली औरत को जब अपने मनपसंद कपड़े फिट नहीं आते तो इस चीज का दुख वही समझ सकती है। हार्मोनल चेंज के चलते शारीरिक और मानसिक तल पर आने वाले बदलाव केवल एक मां ही समझ सकती है। इन सब के चलते उसे जरुरत होती है तो सिर्फ प्यार की, अपनों के, परिवार के और सबसे ज्यादा अपने पति के। अगर उस 9 महीने के दौरान औरत से जुड़ा हर शख्स उसे प्यार और स्नेह दे, तो उसके लिए यह 9 महीने का सफर कुछ आसान जरुर हो सकता है।


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Sleep Problem


इन सब के अलावा, रात में नींद न आना, बेवक्त अलग-अलग चीजें खाने का दिल करना, पेट में हर वक्त होती एक हलचल और आखिर में 9 महीने की कठोर तपस्या का फल, जब आप इस दुनिया में आए। जहां पूरा परिवार और आप बेहद खुशी महसूस करते हैं, वहीं प्रसन्नता के साथ जिम्मेदारियां भी दोगुनी हो जाती हैं।


 


रात-रात भर बच्चे के लिए जागना, कभी बुखार, तो कभी रोना, इन सब परिस्थितियों को एक मां ही है जो अच्छे से समझ और सुलझा सकती है। मगर कहीं न कहीं जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम मां को Taken For Granted यानि उनकी उतनी कद्र नहीं करते जितनी हमें करनी चाहिए। सब लोग नहीं मगर ज्यादातर बच्चे मां की डांटा हुआ तो याद रख लेते हैं, मगर आपके लिए किया हुआ इतना कुछ याद नहीं रख पाते।